Friday, August 10, 2012

team anna -- देशबन्धु १० अगस्त २०१२


































लीना मेहेंदले   --  देशबन्धु - 10, Aug, 2012, Friday 
आखिर उपोषण इत्यादि से जनलोकपाल बिल नहीं लाया जा सकता- यह बात समझ में आने पर टीम अन्ना ने फैसला लिया कि अब वे इसे लाने के लिए राजकीय रास्ता अपनाएंगे और इसीलिए 2014 के लोकसभा चुनाव में एक राजकीय पक्ष के रूप में उतरने का निर्णय लिया। इस निर्णय पर तीव्र प्रतिक्रियाएं हुई हैं जिनमें क्रोध, हतबलता, उपहास और आशा ये चारों रंग अलग-अलग प्रतिशत में घुले हुए हैं।
मैं इस निर्णय को सही या गलत तो नहीं मानती लेकिन मेरे विचार में यह नितांत अपर्याप्त है। इसी कारण इसके कुछ पहलुओं को जांचना चाहती हूं। किशोरावस्था में पढ़ी हुई विनोबाजी की एक स्मृति याद आती है। स्वतंत्रता पाए हुए अभी आधा दशक भी पूरा नहीं हुआ था। विनोबाजी ने भूदान यज्ञ चलाया। बड़े जमींदारों को प्रोत्साहित किया कि वे अपनी जमीन भूमिहीनों के लिए दें। उन्हें बिहार, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश में काफी यश मिला। यज्ञ अभी चल रहा था। भूमि का बंटवारा शुरू हुआ था। एक अभूतपूर्व घटना घट रही थी।
नेहरूजी ने बुलावा भेजा विनोबाजी से कहलवाया 'आप सरकार से बाहर रहकर इतना इच्छा काम कर रहे हैं- सोचिए सरकारी ताकत भी इस अच्छे काम के पीछे लग जाए तो यह काम कई गुना अधिकता से हो सकता है, अत: आप सरकार में आ जाइए- कृषि मंत्री का पद स्वीकार करिए और सरकार की प्रतिभा को भी चमकाइए।'
विनोबा ने उत्तर दिया- 'नहीं आऊंगा। हमारे देश ने लोकतंत्र को अपनाया है- राजतंत्र को नहीं। लोकतंत्र की आवश्यकता है कि इसमें लोगों को लगना चाहिए कि उनके अच्छे इरादे और अच्छे कामों से समाज का विकास हो सकता है- हर विकास के लिए सरकार की या सरकारी सत्ता की आवश्यकता नहीं है। यदि लोगों को लगा कि कोई विकास सरकार के बिना नहीं हो सकता है, तो यह लोकतंत्र के लिए मनोबल घटाने वाली बात होगी। लोकतंत्र में लोगों के विश्वास को बचाने के लिए आवश्यक है कि मैं यह काम सरकार से बाहर रहकर करूं-भले ही छोटे स्तर पर होता हो।'
1952 और 2012- साठ वर्ष बीत गए। इस दौरान धीरे-धीरे सामाजिक कार्यों की व्याप्ति और पहुंच और दृष्टि व दायरा-सभी सिमटते चले गए हैं। अब यह स्थिति आ गई है कि कोई अच्छा काम करना हो तो लगता है कि इसके लिए सरकार में सत्ता हासिल किए बिना बात नहीं बनेगी। 
और सत्ता का खेल भी अब खेल नहीं रहा, बल्कि एक मारो या मरो वाला मुकाम सा बन गया है। सत्ता में आने के लिए पहले चाहिए पैसा। फिर चाहिए बडी संख्या- उसके लिए बड़ा संगठन-उसके लिए बड़ा पैसा। यह केवल एक आवश्यकता है। दूसरी आवश्यकता है कि लोगों में अलगाव, आवेश, आक्रोश भर दिया जाए और दावा किया जाए कि हम ही हैं- तारनहार। आज प्रत्येक पार्टी किसी न किसी भौगोलिक हिस्से में इस प्रकार के अलगाव को प्रोत्साहन देती हुई दिखाई देगी। इसी के लिए बाहुबली भी पालने पड़ेंगे। तीसरी आवश्यकता है कि दूसरों के अच्छे कामों का विरोध करो, उसे सफल न होने दो, क्योंकि दूसरे 'अच्छे' दिखे तो सत्ता में अपने लिए स्पर्धा खड़ी हो जाती है। चौथी आवश्यकता है समय की । इतने कम समय में बडी सत्ता नहीं मिल सकती। फिर गठबंधन- जोड़-घटाव, लेन-देन का व्यापार शुरू हो जाता है।
इन चारों आवश्यकताओं को ध्यान रखने में किसी भी राजकीय पक्ष को इतना समय लगाना पड़ता है कि इनकी पूर्ति ही साध्य बन जाती है। फिर वह लक्ष्य कोसों दूर चला जाता है जिसे 'साधने के लिए' सत्ता को साधन बनाने का फैसला लिया गया था। टीम अन्ना के निर्णय से लोगों में यदि क्रोध, उपहास या हतबलता की भावना आई है उसका कारण भी यही विवंचना है, भले ही इसे इतनी स्पष्टता से अभी नहीं देखा जा रहा हो।
अब दो प्रश्न पूछे जा सकते हैं- क्या कभी भी किसी नए व्यक्ति का राजनीति में प्रवेश हो ही नही सकता? ऐसा नहीं है- यदि किसी की सामाजिक कार्य की प्रतिमा बन गई हो तो वह चुनाव में जीतकर आ सकते हैं- इसका एक उदाहरण है गुजरात के एक पुलिस कमिश्नर (शायद सूरत के) जो नौकरी छोड़कर राजनीति में उतरे, जीते भी। लेकिन आज वे कहां हैं? या फिर आंध्र में हाली चुनाव में एक सीट जीतने वाला प्रजातंत्र पक्ष जो अब कांग्रेस में विलीन हो गया है। इसलिए यदि टीम अन्ना ने राजकीय पक्ष की स्थापना का निर्णय लिया हो तो लोग पहले उसके उम्मीदवारों का सामाजिक कार्य पूछेंगे। आज अन्ना हजारे को छोड़ किसी और सदस्य का सामाजिक कार्य क्या है? वह कहीं दिखाई नहीं देता तब तक चुनाव लडने का सपना कोई खास सफलता नहीं देने वाला।
एक दूसरा प्रश्न भी पूछा जा सकता है यदि लोकतंत्र में सत्ता पाने के लिए उन चार आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है तो कई अन्य राष्ट्रों में यही लोकतंत्र प्रणाली क्यों विकास-गंगा बन पाई। उदाहरण स्वरूप यदि यूरोपीय देशों को देखें तो लगता है कि वहां लोकतंत्र सशक्त है और विकास का रास्ता प्रशस्त कर रहा है। फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं तो इसका भी कारण है उन नागरिकों की सार्थक समाज कार्य करने की क्षमता। इसका पाठ वहां विद्यार्थी दशा से ही आरंभ होता है जबकि अपने यहां छात्र-संगठन भी भ्रष्ट राजनीति में लिप्त हो जाते हैं। मैं मानती हूं कि राजनीति में घुसकर सत्ता पाने का प्रयास एक शार्टकट की तरह है। जबकि सामाजिक काम के रास्ते अपना साध्य पाने के लिए एक लम्बा सफर तय करना पड़ता है। अत: किसी भी टीम को यह लगना स्वाभाविक है कि शॉर्टकट का रास्ता लिया जाए। लेकिन मुझे नहीं लगता कि ठोस सामाजिक कार्य के बगैर वह मंजिल तक पहुंचाएगा।
टीम अन्ना राजनीति में असफल होती है तो यह पूरे देश के लिए दुखद घटना होगी क्योंकि भ्रष्टाचार हटने का कोई दूसरा रास्ता नहीं दिखता। लेकिन उनकी सफलता का रास्ता हजारों-लाखों के छोटे- बड़े सामाजिक कार्यों के पड़ाव से ही गुजरना है शॉर्टकट से चिरंतन कुछ भी हासिल नहीं होगा।

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    • Leena Mehendale लेकिन हमारे हाथमें एक बात है, यदि हम कोई छोटा-बडा समाज-कार्य कर रहे हैं और ऐसे हजारों लाखों छोटे-छोटे कामोंको उनके अभियान से जोडें तो संभावना बनती है, लेकिन यह जुडना दोनों ओरसे हो तभी सार्थक होगा।
      22 hours ago ·  · 4
    • स्वप्निल कल्याणकर 
      I'm not yet that good or prepared to write in detail but if ppl can accept sons and daughters of politicians based on father's 'social'/political work...then there should not be a problem to accept most of candidates from IAC....mainly bc...See More
      22 hours ago ·  · 1
    • Leena Mehendale वे बेटे -बेटी जो बापकी विरासतपर राजनीतीमें उतरते हैं, उनके पास बापका कमाया धन और बाकी सब हथकंडे भी तो होते हैं।
      21 hours ago ·  · 1
    • Vinod M. Jadhav क्या आपने स्वामी रामदेवजी के कार्यों के बारे में सुना/ देखा है? जमीनी स्तर पर उन्होने जो कार्य अब तक किया है और स्थायी रूप जो आगे चलता रहेगा वह समझने लायक है।
      स्वदेशी से और स्वावलंबन से ही देश की प्रगति संभव है। इस बात को उन्होने करके दिखाया है। दुसरों के भरोसे (FDI ya World Bank के कर्ज से) हम कभी भी प्रगती कर नहीं सकते।
      हर भारतवासी को अपनी कार्यक्षमता को बढ़ाना होगा।
      21 hours ago · Edited · 
    • Sudhakar Jadhav राजकीय गटारगंगा साफ करण्यासाठी व्यवस्थात्मक बदलाची गरज आहे हे लक्षात घेतल्याशिवाय नवा राजकीय पर्याय उभा राहू शकत नाही हे टीम अण्णाला समजेल त्या दिवशी टीम अण्णा कडून राजकीय पर्यायाची मुहूर्तमेढ रोवल्या जाईल.
      Blog: common non sense
      Post: जंतर मंतरचे डॉन क्विझोट
      Link: http://myblog-common-nonsense.blogspot.com/2012/08/blog-post_9.html
      20 hours ago ·  · 
    • Anil Garg विनेबा भावे का कथन ,मैं यह काम सरकार से बाहर रह कर करूँ, भले ही छोटे स्तर पर होता हो, अपनी जगह ठीकलेकिन जिस काम का बीडा अन्ना ने उठाया है वो तो बडे स्तर पर ही हो सकता है और उसके लिये राजनीति में आने का फैसला मुझे तो सही लगा।
      यह दुर्भाग्यपूर्ण होगा किवह लक्ष्य कोसों दूर चला जायेजिसे साधने के लिये सत्ता को साधन बनाने का फैसला लिया जा रहा है।
      20 hours ago ·  · 2
    • सत्ता एवं राजनिती हर मसले का हल नहीं है. वह एक साधन है,साध्य नही.मैं अण्णा हजारेके किसीभी आंदोलनका समर्थक नही हूं.क्योंकी परिवर्तन भावानिकतासे नही बल्की व्यवहार्य कृतीसे होता है.इस आंदोलनने जनांदोलन कि सीमाकोही ध्वस्त किया. यह दिखनेमे जनांद...See More
      18 hours ago · 
    • Dinkar Wasekar · Friends with Seema Redkar
      टीम अण्णाबद्दल सुरवातीपासुन राजकिय पक्षाच्या आरोपाला अण्णा राजकिय आखाडात उतरण्याचा विचार नांडून बळकटी दिली.मुळात समाज सुधारणा करण्यासाठी राजकिय विचाराची गरज नसते, तर समाजसुधारणेबाबत ठोस कार्यक्रम घेऊन चालावे लागते.भ्रष्टाचार ही समाजमनाला ला...See More
      11 hours ago · 
    • Leena Mehendale 
      जो समाज-कार्य राजनितिको प्रभावित करे वह चिरंचन होता है -- जैसे RTI Act, उससे पहले कन्झ्यूमर प्रोटेक्शन ऍक्ट , उससे पहले नॅशनल कमिशन फॉर वूमेन ऍक्ट -- ये सभी ताजा उदाहरण है। खुद संविधानमें आरक्षणकी कल्पना इसलिये स्वीकार हुइ क्योंकि इसके प
      ीछे डॉ आंबेडकरका सामाजिक कार्य था -- या गांधीजी भी सबसे अधिक लोकप्रिय राजनेता हुए क्योंकि न केवल अहिंसा का फलसफा, बल्कि खादी, स्वदेशी, स्त्रियोंका सहभाग, हरिजन पत्रिका, टॉलस्टाय आश्रम जैसे कई सामाजिक व रचनात्मक कार्य उन्होंने किये। खूद टीम अण्णाको अण्णाकी आवश्यकता क्यों हुई -- क्योंकि अण्णाका व्यक्तिगत किया हुआ समाजकार्य -- जो भले ही उनके गाँव तक सीमित रहा हो। आज केवल पक्ष बना देना टीम अण्णाके लिये अपर्याप्त ही रहेगा यदि सामाजिक कामोंकी एक लम्बी परंपरा (भले ही विभिन्न लोगोंद्वारा किये गये) उनके साथ नही जुडती।













2 comments:

GIRIDHAR said...

I totally agree with you Leenaji,I don't understand how a one party with rather naive activists will be able to change the corrupt system even if they win the election!! The corruption and all wrongs happening in our society, Is forming a political party a answer to this? No.
The ANNA LEAD movement against corruption had created tremendous energy among the youths, the right way to utilize this energy was to build a India wide organization, of-course not expecting urgent results. The polity has to change from basic , we have to start from ourselves. I am playing my part , I am inviting you to my Facebook Page " Intiatives For Change,The Idea That Makes India". I will like you to read my thoughts on this in information section(about). I will like you to guide me on this issues. Maybe my thoughts are naive, but i am following this thoughts dedicatedly. I am looking forward to give most of my time to work and make this IDEA TRUE.

GIRIDHAR said...
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