Saturday, February 23, 2008

जानो अपनी समृध्दि को

पहले दोनों लेख ये ये पावसा में -तीसरा यहाँ
कठिन नही है डगर अभिभावक की
हर घर में एक ऐसा समय अता है जब हम अभिभावक की भूमिका में आ जाते हैं और सोच में पड जाते हैं कि बच्चों का व्यक्तित्व निखारने के लिये क्या करें।
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सच्चाई का संस्कार एक बहुत बडी बात होती है। जब मनुष्य ने बोलना सीखा तो वह पूरा प्रकटन इसलिये था कि दिल की बात, मन के विचार, जो अनुभूतियों के स्पंदन से जागृत होते हैं, उन्हें दुसरों तक पहुँचाया जाय, उनका संचरण हो। लेकिन धीरे धीरे मनुष्य ने जाना कि झूठ भी बोला जा सकता है।
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हिमालयन ओऍसिस, सिमला के अंक में प्रकाशित


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हिमालयन ओऍसिस, सिमला के अंक में प्रकाशित

जानो अपनी समृध्दि को
-लीना मेहेंदळे

हमारा देश और संस्कृति दोनों अतिप्राचीन हैं | अतएव इतका

जतन करना भी हमारी जिम्मेदारी बन जाती है | जतन करने की कई
विधाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण है नामकरण और गिनती |
कया पशुपक्षी भी एक दूसरे को नाम से पहचानते या बुलाते हैं ?
शायद नही | कमसे कम हम मनुष्यों को तो यह नही मालूम | लेकिन
हम अपने संगी साथियोंको नाम से पहचानते हैं | घर में नया शिशु

ज-म लेता है ती जल्दी से उसका नामकरण करते है | घर मे कोई प्रिय
जानवर हो, जैसे गाय, बकरी, कुत्ता, घोडा, सांड तो उनका भी हम
नामकरण करते हैं | इस प्रकार नामकरण से यह सुविधा होती है कि
उस व्यकित की बाबत बात करना आसान हो जाता है | हम वस्तुओं
के भी नाम देते हैं | व्याकरण मे सबसे पहले हम नाम या संज्ञा के
विषय में ही पढते हैं | किसी वस्तु के नाम के साथ जब हम उसका
बखान करते हैं तो इससे ज्ञानके विस्तार में सुविधा होती है | यही बात
गणित और गिनती के साथ भी है |
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हिमालयन ओऍसिस, सिमला के अंक में प्रकाशित

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