देशबन्धु 27, Aug, 2012, Monday
व्यवस्था परिवर्तन सूत्र 1
लीना
मेहेंदले
देश के सम्मुख आज अनगिनत
समस्याएं हैं और सभी व्यवस्था परिवर्तन की बात करते हैं। लेकिन व्यवस्था परिवर्तन
का अर्थ हमेशा क्रांति नहीं होता और केवल क्रांति से बात नहीं बनती। आमूलाग्र
परिवर्तन के साथ कई छोटे-छोटे परिवर्तन भी आवश्यक हैं, लेकिन इन सब के पीछे पहले
दर्जे का आवश्यक सूत्र है- जानकारी। वह भी ऐसी जानकारी कि सामान्य व्यक्ति उसकी मूल
अवधारणा को पलभर में पकड़ सके, समझ सके और उस पर अपनी अभिव्यक्ति दे सके।
यहां
मैं जानकारी के बाबत एक छोटे पहलू की चर्चा करना चाहती हूं। एक ऐसा पहलू जो बिहारी
के दोहों की याद दिलाये और कहे- देखन में छोटे लगे, घाव करें गंभीर। यह पहलू है
सांख्यिकी का। हमें अपनी सांस्थिकी पद्धति में सुधार लाना पड़ेगा और उसे मॉडयूलर
बनाना पड़ेगा। उनकी रचना ऐसा होनी चाहिये जैसे एक के अंदर एक फिट बैठने वाले बरतनों
का एक सेट। कुछ नमूनों के माध्यम से इसे समझाया जा सकता है। कृषि उत्पादन का नमूना
देखते हैं। देश के छह प्रमुख झोन हैं। पूर्वोत्तर, पूर्व, उत्तर, पश्चिम, मध्य,
दक्षिण और मध्य।
पूर्वोत्तर -- आसाम मेघालय मणिपूर त्रिपुरा मिझोराम नागालँण्ड अरुणाचल
पूर्वी -- बंगाल, सिक्किम, बिहार, झारखंड, ओरिसा
उत्तरी -- उत्तराखंड, जम्मू-काश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरयाणा, चंडीगड, दिल्ली.
पश्चिमी -- राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, दमण-दीव, दादरा-नगरहवेली,
दक्षिणी -- केरल, तामलनाडु, आंध्र, पांडिचेरी, अंदमान-निकोबार,
मध्य -- मध्य प्रदेश, छत्तीसगड, उत्तर प्रदेश
कृषि उत्पादनों का वर्गीकरण भी इस प्रकार किया जा सकता है। अनाज (गेहूं,
चावल, बाजरा, मकई, ज्वार अन्य मोटा अनाज) दलहन (मूंग, अरहर, चना, मसूर, अन्य) तेलहन
(मूंगफली, सोयाबीन, सरसों, तिल, नारियल, पाम, सूर्यमुखी का फूल, अन्य), फल-सब्जी,
फूल, घास तथा अन्य उत्पाद।
यहां राज्यों के बांई ओर जहां औसत उपज लिख सकते हैं,
वहीं कॉलम का शीर्षक बदलकर उन उत्पादों का मूल्य भी लिखा जा सकता है। राज्यों के
कॉलम में एक-एक झोन के सभी राज्यों के नाम लिखे जा सकते हैं और यदि एक ही राज्य की
जानकारी लेनी हो तो उस राज्य के विभाग और फिर उनके जिले और फिर उनके तहसील और उनके
अंचल और अंचलों के गांव तक जा सकते हैं। बीच वाला ाोन का कॉलम कायम रखकर दांई ओर
देश के उद्योग समूहों में होने वाले उत्पादों की जानकारी ली जा सकती है। उदाहरण के
लिये सारे उद्योगों का यूं वर्गीकरण कर सकते हैं। खनिज, धातु-खनिज, मशीनरी, पावर,
वस्त्र, कृषि-खाद्य, फिर कुल जानकारी का विस्तार जानने के लिये प्रत्येक वर्ग के
उपवर्ग बनाकर उनकी जानकारी इसी फॉर्मेट में ली जा सकती है। इसी इसी फॉर्मेट में देश
के अपराधिक मामलों की जानकारी ले सकते हैं।
हमारे कोर्ट में जानेवाले मामले की
अत्यधिक हैं। सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के अंतर्गत बाकी सारे कोर्ट आते हैं। कई बार
अलग-अलग कानूनों के अंतर्गत स्पेशल कोर्ट भी आते हैं। यथा पब्लिक ट्रस्ट एक्ट के
अंतर्गत चैरिटी कमिशनर का कोर्ट अथवा विभिन्न प्रकार के ट्रिब्यूनल्स। इनमें तय
किये मामले अपील में सीधे हाईकोर्ट तक जाते हैं। इनके अलावा प्रत्येक जिले में जिला
न्यायालय के साथ तालुका स्तर पर या मेट्रो शहरों में मेट्रोपालिटन मजिस्ट्रेट भी
होते हैं।
न्याय के लिये उठाये जाने वाले मामलों को पांच वर्गों में गिना जा
सकता है- अपराध व दंडविधान से संबंधित मामले, दीवानी मामले, छोटे-मोटे मामले (स्मॉल
कॉज केसेस) या खास-खास न्याय प्रक्रियाओं में जाने वाले मामले- ट्रिव्यूनल इत्यादि।
इनके अलावा कृषि-जमीन से संबंधित मामले रेवेन्यू मशीनरी अर्थात् पटवारी, तहसीलदार,
जिलाधीश इत्यादि द्वारा तय किये जाते हैं। इन सभी प्रकार के न्यायालयों में
प्रलंबित पड़े मामले करोड़ों की संख्या में हैं और उनका प्रलंबन काल भी पंद्रह
बीस-पचीस वर्ष की अवधि तक का हो सकता है। सबसे चिंता की बात यह है कि कहीं भी एक
जगह ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जहां तत्काल पता चल सके कि भारत के कुल न्यायालयों में
कितने मामले प्रलंबित हैं। हां, इतनी जानकारी सबको है कि प्रलंबित मामलों की संख्या
सौ करोड़ से अधिक है। इसी सांख्यिकी की जानकारी हर वर्ष जनता के सामने आनी चाहिये।
इस सांख्यिकी सारणी को बनाने के लिये हमें वहीं नया तरीका अपनाना चाहिये जो मॉडयूलर
हो और एक के अंदर एक फिट बैठता हो। एक ही पन्ने पर हमें मोटामोटी तौर पर समूचे देश
के स्तर पर जो चल रहा है उसकी जानकारी मिल जाएगी। यदि हमें केवल दीवानी मामलों की
जानकारी चाहिये तो बांई ओर के पांच कॉलमों के शीर्षक जो क्रिमिनल, सिविल, स्माल
केसेस, रेवेन्यू और स्पेशल कोर्ट इस प्रकार हैं, उन्हें बदलकर सिविल केसेस के ही
अंतगर्त पांच प्रमुख केटेगरीा का नाम उन कॉलम- शीर्षकों में लिखा जा सकता है।
इसी प्रकार यदि हम केवल किसी एक राज्य की बात करें, यथा महाराष्ट्र, तो उसके
लिये हम केवल महाराष्ट्र के हाईकोर्ट और जिलों के कोर्ट या महाराष्ट्र की भौगोलिक
सीमा में आने वाले स्पेशल ट्रिब्यूनल्स की जानकारी एक पन्ने पर लेंगे। यदि केवल एक
ही जिले की जानकारी चाहिये तो केवल उस एक जिले का ब्यौरा लिया जा सकता है।
इसी
प्रकार यदि हमें प्रलंबित मामलों की विस्तृत जानकारी चाहिये हो तो बांई ओर के पांच
कॉलमों के शीर्षक बदल सकते हैं। केवल 1950-1980 के बीच उठे प्रलंबित मुद्दे भी
1950-1960, 1960-1965, 1965-1970, 1970-1975, 1975-1980 इस प्रकार विस्तार से देखे
जा सकते हैं। ऐसे मॉडयूलर फॉर्मेट का बड़ा फायदा यह है कि इन्हें फटाफट जोड़ा भी जा
सकता है। अर्थात् जब चाहें विस्तार कर लें और जब चाहें समेट लें- एक जपानी पंखे की
तरह। इस प्रकार यदि जानकारी इकट्ठी की जाय तो लोक जागृति का काम सरल होगा। ऐसी
जानकारी पाने का अच्छा तरीका होगा। जानकारी का कानून अर्थात् आरटीआई
एक्ट!
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Monday, August 27, 2012
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