Thursday, August 23, 2018

अटल अवदान श्री अटल बिहारी बाजपेयी

अटल अवदान श्री अटल बिहारी बाजपेयी

जी

काफी समय से, अस्वस्थ रहने के कारण, जन
सम्पर्क में नहीं थे। जिसे हम ''सम्पर्क'' समझते हैं,
वह कितनी सतही चीज होती है इसका पता चला
उनके पार्थिव शरीर के दर्शनार्थ उमडे जनशैलाव को
देख कर; वह था सूक्ष्म, सौम्य ''सम्पर्क'' का शुभ
प्रतिफल । इस ''अटल-प्रीति'' के माध्यम से संसार
को भारतीय लोक-मानस की संवेदनशील
श्रद्धावनतता का भी परिचय मिला।किशोरावस्था
में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडने वाले अटल
जी के रोम-राम में वहभारतीय संस्कृति समाहित
रही जो अनायास हृदय को हर्षित करती है। इस
संस्कृति को छल-क्षुद्रम नहीं छू पाता, इसकी
प्रकृति में पराई भूमि हडपने की प्रवृत्ति नहीं है;
आतंक-छल-प्रलोभन के बल पर अपनी संख्या
बढाने को यह संस्कृति घोर पापकर्म मानती है।
अटल जी कहते हैं ---

माँग रही है भारतमाता

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''भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जीतने का
निश्चय।हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा
परिचय।''
उन्हें अपना यह परिचय देकर क्यों कहना पडा---
''यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड, चेतन तो कैसा विस्मय?''
अमानुषिक आक्रमण झेलने वाली मातृभूमि की
अखंड जिजीविशा देख उनके कोमल कवि मन में
गर्व तथा क्रोध का मिश्रित भाव उभर आया है---
''शत-शत आघातों को सह कर, जीवित हिन्दुस्थान
हमारा,जग के मस्तक पर रोली-सा शोभित हिन्दुस्थान हमारा
।''
*(अटल जी की गरिमामय चर्चा के बीच निम्नकोटि का कोई
प्रसंग उठाने का मन नहीं होने पर भी उस कलुषित
वातावरण की पोल खोलना अनिवार्य हो गया है जिसमें रह
कर उन्हें काम करना था। स्वतंत्र भारत में वह कैसी भयावह
स्थिति बना दी गयी थी; ''हिन्दू'' को हीनता का पर्याय बनाने
की सरकारी साजिश के पीछे कौन लोग थे? एक अनन्य
देशभक्त को छाती ठोक कर ''हिन्दू'' के रूप में अपना
परिचय देने की आवश्यकता क्यों हुई?)
बीसवीं सदी के मध्य में भारत राजनैतिक स्तर पर
बर्बर मुसलमानी बादशाहत और लम्पट ईसाई
लुटेरा राज से मुक्त हुआ था, परन्तु भारतीय

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प्रकृति के अनुकूल वातावरण नहीं बना। क्रूर सुर-
सूदक मुसलमानी मूर्खता और घमंडी कुटिल ईसाई
बदचलन के कॅाकटेल को भारत का राष्ट्रीय चरित्र
बना देने का षडयंत्र आजादी के पहले ही से शुरू
हो चुका था। ''JNU'' जैसे टकसालों की स्थापना
उसी साजिश की कडी है। इन राजकीय टकसालों
की ''डीफॅाल्ट प्रोग्रामिंग'' ऐसी थी कि शुद्ध द्रव्य
डालने पर भी, उत्पाद ''फेक'' ''करेंसी'' 'की ही हो।
उद्देश्य था ''विद्वान'' या ''योग्य'' या ''आधुनिक''
बनाने के नाम पर भारतीय संस्कृति के श‍त्रुओं
की जमात तैयार करना; यह धंधा धरल्ले से चल
निकला। परन्तु धन्य हैं ऐसे अनेक भारतीय युवा
जो इन काजल की कोठरियों में भी जाकर बेदाग
निकल आये; बल्कि वहाँ चल रही भारत-विरोधी
हरकतों के विरुद्ध सतर्क-सावधान होकर अपने
हित-भित्रों को भी सावधान कर दिया।
भारतीय स्वतंत्रता के विरोघी साम्यवादियों को
शासन-प्रशासन ने इन राष्ट्रघाती संस्थाओं का
संचालक और नीति निर्धारक बनाया था! भारत को
किसी-न-किसी विदेशी साम्वादी ढूह का annexe

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बनाने का दिवास्वप्न देखने वाले साम्यवादियों का
मानना था कि भारत स्वतंत्र रहने योग्य नहीं है।
सारे संसार में साम्यवाद की स्थिति क्या है, यह
सबको ज्ञात है; इसे तो अपना जननांग ढकने के
लिए एक टुकडा चीथडा तक नहीं मिल रहा है।
वैचारिक तथा व्यावहारिक स्तर पर भारत के
जनगण ने भी साम्यवादियों को कूडेदान में डाल
दिया। आजादी के जलसे के बाद, वही कूडाखोर
साम्यवादी जूठी पत्तलों पर टूट पडे, जबाहर लाल
नेहरू के आगे-पीछे दुम हिलाने लगे। तब इनके
गले में बफादारी का पट्टा ''AWARD'' कर जो काम
सौपा गया, वह था भारतीय संस्कृति तथा इसके
इतिहास का विलोपन कर देना; उसके बदले ऐसा
मिथ्या इतिहास-साहित्य-शिक्षणसामग्री तैयार कर
प्रकाशित-प्रचारित-संचालित करना जिससे भारत
असभ्य-कायर-भ्रष्ट-पराजित-पतित दिखाई दे।
दरअसल, यूरोपप्रेमी जबाहर लाल नेहरू के भीतर
हिन्द़ू-हिन्दुत्व-हिन्दुस्थान-हिन्दी(सभी भारतीयभाषाओ)
के प्रति अनास्था थी। सम्भव है नेहरू पर मार्क्स
के उस अंध हवशी विचार का प्रभाव रहा हो कि

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भारत के लोग जंगली जानवरों के समकक्ष हैं, पेड-
पौधों, गाय-बन्दर की पूजा करते हैं। अभागे मार्क्स
के अनुसार भारत की कोई प्राचीन सभ्यता नहीं
थी। मार्क्स ब्रिटेन का शत्रु था, परन्तु भारत को
लूटने के लिए वह उसको शावाशी देता था। उसकी
राय में ब्रिटेन को भारत का नमोनिशान मिटा देना
चाहिए था। और, जो काम ब्रिटेन नहीं कर पाया
वही पूरा करने में जबाहर लाल नेहरू ने मार्क्स के
जारज पिल्लों को लगा दिया। भारत के साम्यवादी
मार्क्स-वेबर-माओ के ही नाजायज वंशज हैं; अपने
बाप की तरह ही भारत को अकिंचन, समस्याग्रस्त
और बिखरा हुआ देखना चाहते हैं। भारत की
आध्यात्मिकता, वैदिक-उपनिषदिक ज्ञान-सम्पदा,
नैतिक-रामराज्य, युद्ध की रास थामने वाले कृष्ण,
सम्राटों के सिरमौड विक्रमादित्य, मेघ तक को दूत
बनाने वाले अद्वितीय कवि कालिदास, राजनीति-
अर्थनीति के जनक चाणक्य, आकाश से पाताल
तक वैज्ञानिक उपलब्धियों के सूत्रधार भट्टारकगण
--सब-के-सब साम्यवादियों और उनके बाप के लिए
मिथ्या है। इतना ही नहीं, शिवाजी, झाँसी की

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रानी, भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, सुभाण चन्द्र
बोस सभी नगण्य हैं। साम्यवादियों के लिए भारत
का सत्य है टूटे हुए पवित्र मंदिरों पर कतलखानों
की तरह खडे मस्जिद और गिर्जाघर। उनका तीर्थ
है हिन्दूकुश।
*
'हिन्दूकुश'' ने व्यथित होकर अपने अपमानजनक
नामकरण के विरुद्ध गुहार लगायी और भारत की
चेतना ने पार्श्व परिवर्तन किया; जनजागरण की
इस शुभवेला में ही जनप्रिय जननायक अमर अटल
जी का जन्म हुआ। उन्होंने अपना परिचय देकर
अपने जन्म तथा जीवन का उद्देश्य बता दिया है।
उनकी एक पंक्ति है--''दिन दूर नहीं खंडित भारत को
पुन: अखंड बनायेंगे।'' पढ कर रोमांच हो गया;
श्रीअरविन्द की आर्षवाणी याद आ गयी; श्रीअरविन्द
ने के.एम.मुंशी के एक पत्र का उत्तर देते हुए
पाकिस्तान को अस्थायी बताया है। युगद्रष्टा की
इस घोषणा को सम्पन्न होना ही है। सचेतन कवि
अटल जी के मानसिक संकल्प के रूप में इसके
क्रियान्वयन का प्रारंभ हुआ और अब जनगण मन

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में संक्रमित हो रहा है। आजादी के लम्बे समय
बाद तक भारत की केन्द्रीय-सत्ता मुसलमान-ईसाई-
साम्यवादी तिकडी के कब्जे में रही। इनकी धौंस
भरी दुर्नीतियों ने बहुसंख्यक जनगण को बेहद
सहमा दिया। देश का मनोबल गिरे यह अटल जी
के लिए असहनीय था; वे दुखी होकर ललकारते हैं
--
''हिन्दू कहने में शरमाते, दूध लजाते, लाज न आती।''
उनकी आस्था हिन्दुत्व के सुभग संगठन पर है--
''हिन्दू-हिन्दू मिलते जाते, देखो हम बढते ही जाते।''''हिन्दू ने
निज को पहचाना, कर्त्तव्य कर्म सर-संधाना।''
उनके प्रश्न हमारे मन में सोच जगाते हैं--
''शस्य-श्यामला स्वर्ण-भूमि क्यों हुई आज कंगाल?
किसके पापों का प्रतिफल है भोग रहा बंगाल?''
ग्लानिजनक अनीतियों के विरुद्ध समय-समय पर
सकारात्मक सोच से भरे स्वर उभरते रहे हैं, परन्तु
कौवे की काँव-काँव ने कोयल की कूक को
कर्णगोचर नहीं होने दिया। दीनदयाल उपाध्याय,
श्यामा प्रसाद गुखर्जी जैसे सशक्त व्यक्तित्व प्रकट
हुए, परन्तु उन्हें रहस्यमय मृत्यु का शिकार होना
पडा। वयोवृद्ध जयप्रकाश नारायण के ''युवा'' हुंकार

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ने अनीतियों की चूल हिला दी थी; परन्तु वह
संघर्ष भी अधूरा-सा रह गया।
इस संदर्भ में अटल जी कहते हैं---
'' जयप्रकाश जी ! रखो भरोसा, टूटे सपनों को
जोडेंगे।चिताभस्म की चिनगारी से अंधकार के गढ तोडेंगे।''
अटल जी केवल बाहुबल की ही बात नहीं करते, वे
उस भारतीय मेधा के प्रकाश से भी संसार को
परिचित कराते हैं जिसे जानबूझ कर नकारने की
फूहड कुचेष्टा को भारत-विद्वेषियों ने अपना प्रमुख
एजेंडा बनाया है---
''वेद-वेद के मंत्र-मंत्र में, मंत्र-मंत्र की पंक्ति-पंक्ति में,
पंक्ति-पंक्ति के शब्द-शब्द में,शब्द-शब्द के अक्षर स्वर में,

दिव्य ज्ञान-आलोक प्रदीपित।''

वे कहते हैं कि हिन्दू समाज एक ''परिपूर्ण सिन्धु'' है
जिसकी वे ''एक बूंद'' हैं।
वस्तुत: उनमें है बाल सुलभ सरलता तथा
ज्ञानवृद्ध गंभीरता का सहज-सटीक सम्मिश्रण।
अटल जी के विचार, शब्द तथा व्यवहार ने
भारतीय जन मानस को जगा दिया। वे धरती से
जुडे हैं, परन्तु उनका मस्तक आसमान तक उत्तिष्ठ
होता रहा --

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''एक पाँव धरती पर रख कर ही वामन भगवान ने
आकाश-पाताल को जीता था।''
वे अपने लिए ऐसा ''विशेष'' मुकाम नहीं चाहते थे
जहाँ ''सामान्य'' जन नहीं पहुँच पाये----
''हे प्रभु! मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना
गैरों को गले न लगा सकूँ इतनी रुखाई कभी मत देना।''
कम शब्दों में अधिक-से-अधिक कह देने मे वे
माहिर थे। उनके सूत्रवाक्य लोगों ने कंठस्थ ही
नहीं, हृदयस्थ भी कर लिये---
''छोटे मन से कोई बडा नहीं होता,
टूटे मन से कोई खडा नहीं होता। मन
हार कर मैदान नहीं जीते जाते, न मैदान
जीतने से मन ही जीते जाते है।''

राष्ट्र संघ के मंच से हिन्दी में भाषण देकर भी
अटल जी ने ''मैदान'' और ''दिल'' दोनों ही जीता
था। ''गूँजी हिन्दी विश्व में, स्वप्न हुआ साकार।''
स्वभाव से कवि अटल जी युद्ध के घोर विरोधी
थे। परन्तु डर कर जीना उन्हें मंजूर नहीं था। वे
राष्ट्र को, समाज को भयमुक्त करना चाहते थे।
इसीलिए भारत को परमाणु शक्ति-सम्पन्न बना
कर, कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को पछाड कर

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उन्होंने कीर्तिमान स्थापित किये। केवल रणभूमि
में ही नहीं, पाकिस्तान की बेहूदी माँगों का करारा
उत्तर देकर राष्ट्रसंघ की बैठक में भी उसकी बोलती
बन्द करा दी।
अटल जी की प्रखरता के मूल में थी उनकी अटूट
राष्ट्रभक्ति तथा भारतीय संस्कृति में गहन
आस्था। उन्होंने अपने-आप को पहचाना था; वे
दूसरों के भीतर छिपी सम्भावनायें भी देख लेते थे।
स्वयं प्रधान मंत्री बन कर उन्होंने देश का मस्तक
ऊँचा किया ही, आगे आने वाले समय के लिए
नरेन्द्र भाई को तैयार करने का विलक्षण कार्य
किया; उनके अवदानों की सार्थकता सदा बनी
रहेगी।



21.08.2018

सुधा,9047021019