2. Religion and Science by Albert Einstein
3.
संजय जी,
नमस्कार! आपकी तरकश टीम द्वारा मानकीकरण के बारे में सहयोग के प्रस्ताव से अपार हर्ष हुआ। इस लक्ष्य को लेकर एक प्रस्तावना निम्नवत् है:
सर्वप्रथम हम ISCII और Unicode के प्रति हार्दिक आभार प्रकट करते हैं। क्योंकि ISCII ने सन् 2000 तक भारतीय भाषाओं में कम्प्यूटिंग को आगे बढ़ाया, इसके बाद युनिकोड की लोकप्रियता तथा प्रचलन से हम भारतीय भाषाओं में इण्टरनेट पर विचारों के आदान-प्रदान में समर्थ हुए हैं। किन्तु इनमें अभी अनेक समस्याएँ हैं, इनका समाधान करने और आगे विकास करने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
कई समस्याओं की जड़ मानकीकरण में हुई कुछ त्रुटियाँ हैं। जिनका सुधार आवश्यक है। लेकिन युनिकोड कोन्सोर्टियम की एक नीति है - http://unicode.org/standard/stability_policy.html जिसके तहत कहा जाता है कि even if, completely wrong, this can't be changed. इसके कारण भारतीय भाषाओं को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। सही विकास अवरुद्ध हो रहा है। अतः आवश्यकता है एक भारत-आधारित प्राईवेट मानक संगठन की।
कम्प्यूटर तथा इण्टरनेट में विविध भाषाई संचार को सम्भव बनानेवाला संगठन www.unicode.org भी तो एक गैर-सरकारी (प्राईवेट) संगठन है। इसके संस्थागत सदस्यों में http://www.unicode.org/consortium/memblogo.html सिर्फ भारत सरकार का tdil,mit तथा तमिलनाडु सरकार ही हैं, जिन्हें वोट देने का अधिकार है। अतः भारतीय लिपियों के प्रस्तावों में वोटिंग में अल्पमत होने के कारण भारत सरकार के प्रतिनिधि के प्रस्ताव भी नामंजूर हो जाते हैं और अन्य विदेशी विद्वान द्वारा प्रस्तुत प्रस्तावों को मंजूरी मिल जाती है, भले ही व्यावहारिक/प्रायोगिक ज्ञान के अभाव में उनमें कुछ त्रुटियाँ रह जाएँ। जिसका खामियाजा समस्त भारतीय जनता को भुगतना पड़ता है। भारतीय लिपियों को complex scripts वर्ग में रखना पड़ा है। युनिकोड के संस्थागत सदस्य के लिए $12000 तथा व्यक्तिगत सदस्य के लिए $150 का वार्षिक सदस्यता शुल्क है। जो आम भारतीय संगटन या व्यक्ति के लिए सहज सम्भव नहीं है। और फिर व्यक्तिगत सदस्य को वोटिंग का अधिकार भी नहीं होता।
सर्वोपरि समस्या यह है कि युनिकोड.ओआरजी अपना कार्यक्षेत्र केवल लिपियों (writing systems) तक सीमित रखता है। लेकिन भाषा व बोली में प्रयोग के बिना केवल लिपियों का प्रयोग कोई मायने नहीं रखता और अनेक प्रायोगिक समस्याएँ पैदा हो जाती हैं।
ISO-9000 तथा ISO-14000 आदि प्रमाणपत्र देनेवाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी तो प्राईवेट संगठन है।
भारत सरकार का मानक संस्थान http://www.bis.org.in/ है, लेकिन 1991 में ISCII का मानकीकरण किए जाने के बाद भारतीय लिपियों के कम्प्यूटरीकरण के सम्बन्ध में न तो कोई अन्य मानक निर्धारित हो पाया है, न ही कोई कार्यवाही नजर आती है। भारतीय लिपियों के कम्प्यूटरीकरण के सम्बन्ध में कई मानकों के ड्राफ्ट प्रस्तुत किए जाने के बाद भी वर्षों से लम्बित है। देखें- http://tdil.mit.gov.in/insfoc.pdf तथा http://www.tdil.mit.gov.in/insrot.pdf जिसके कारण राष्ट्र को प्रतिवर्ष 10000 करोड़ रुपये से अधिक की हानि (डैटा-एंट्री पुनरावृत्ति, परिवर्तन-अक्षमता, compatiblity न होने के कारण) हो रही है।
अतः यदि हम भारतीय लिपियों के कम्प्यूटर उपयोक्ता तथा विकासकर्ता मिलकर एक प्राईवेट "मानक संगठन" का गठन कर लें तो अनेक समस्याओं का समाधान हो सकता है तथा राष्ट्र की वास्तविक सेवा हो सकती है।
भारतीय भाषाओं का युनिकोड कूट-निर्धारण भी तो तत्कालीन प्रचलित मानक ISCII के आधार पर ही तो हुआ है। यदि समाज व राष्ट्र में कोई प्रचलित मानक होगा, भले की वह किसी प्राईवेट संगठन द्वारा मानकीकृत हो, युनिकोड वाले भी उसे स्वीकार करने में प्राथमिकता देते हैं। भारत सरकार का मानक संगठन BIS भी उसके आधार पर मानकों को मान्यता देने में प्राथमिकता देता है। क्योंकि उनको ज्यादा परिश्रम, जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती। भारी संख्या में जनसमर्थन (public support) पहले से हासिल हो चुका होता है।
मानकीकरण का महत्व समझाने की कोई आवश्यकता नहीं है। सभी जानते हैं। उदाहरण के लिए पहले विभिन्न कम्प्यूटर हार्डवेयर एसोसोरिज यथा-- वैबकैम, प्रिंटर, माऊस, की-बोर्ड, पेन-ड्राईव, अतिरिक्त हार्डडिस्क, इत्यादि को Comm port, LPT, 5-pin port, PS2 आदि से जोड़ना पड़ता था, तथा हर हार्डवेयर के साथ उसका अलग से साफ्टवेयर ड्राईवर प्रोग्राम भी इन्स्टाल करना पड़ता था, जिससे incompatibility के कारण उपयोक्ताओं को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता था। अतः manufacturers ने मिलकर USB port का आविष्कार तथा मानकीकरण किया जिससे आज कितनी सुविधा सथा compatibility मिल गई है। plug-and-play रूप में सभी हार्डवेयर आ रहे हैं। सामान्यतया कोई हार्डवेयर ड्राईवर इन्स्टाल करने की जरूरत नहीं पड़ती।
एक मानक संगठन का गठन का प्रस्ताव निम्नवत् है। इस संगठन का कार्यक्षेत्र निम्नवत् होगा :
-- 8-बिट फोंट-कोड का मानकीकरण,
-- रोमन/लेटिन में भारतीय भाषाओं के पाठ को लिप्यन्तरण हेतु मानकों का निर्धारण
-- रोमन लिपि में लिखित पाठ को भारतीय लिपियों में लिप्यन्तरण हेतु मानकों का निर्धारण
-- देवनागरी तथा अन्य भारतीय लिपियों के वर्णक्रम (Sorting order) का मानकीकरण
-- विभिन्न प्रचलित विविध वर्णरूपों में से एक सर्वसुलभ रूप का मानकीकरण
-- युनिकोड की गलतियों का सुधार करके सही मानकीकरण
-- संयुक्ताक्षरों, पूर्णाक्षरों का मानकीकरण
-- लिपि-चिह्नों की सही ध्वनियों का मानकीकरण
-- ओपेन टाइप फोंट्स के glyph Subtitution, glyph positioning आदि नियमों का मानकीकरण
-- वैदिक स्वर चिह्नों का मानकीकरण
-- अन्य इण्डिक कम्प्यूटिंग सम्बन्धी मानकीकरण
भले ही यह प्राईवेट संगठन इतना शक्तिशाली या 'मान्य' न हो कि इसके द्वारा निर्धारित मानकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप से सभी कम्प्यूटरों में कार्यान्वयन हो सके, लेकिन यह BIS तथा Unicode आदि के लिए एक सहयोगी या आधार सामग्री प्रस्तुत करने का दायित्व तो पर्याप्त परिमाण में निभा ही सकेगा।
इस सम्बन्ध में आप सभी के विचार तथा सुझाव आमन्त्रित हैं। विशेषकर चिट्ठाजगत, नारद, ब्लॉगवाणी, भोमियो इत्यादि एग्रीगेटर-संचालकों तथा विकासकर्ताओं (developers) का ध्यानाकर्षण आवश्यक है। अन्य भारतीय भाषाओं/लिपियों के ब्लॉग एग्रीगेटरों तथा विशेषज्ञों/विद्वानों को इसकी सूचना देने हेतु अनुरोध है।
इस सम्बन्ध में विचार-विमर्श के लिए एक गूगल ग्रूप बनाया गया है।
http://groups.google.com/group/indicoms
सभी से निवेदन है कि इसमें join करें तथा अधिकाधिक सदस्य बनाएँ।
हरिराम
On 10/9/07, संजय | sanjay
हरिराम जी नमस्कार,
हाल ही में एक जगह आपकी टिप्पणी में या चिट्ठाकार समूह पर रोमन लिप्पयांतर के मानकिकरण के लिए समूह बनाने का विचार पढ़ा. काफि खुशी हुई की भारत में इस तरह का विचार करने वाला भी कोई है. तरकश टीम आपके साथ सहयोग / काम कर सकती है.
संजय | sanjay
छवि मीडिया एंड कोम्युनिकेशनस