आज पहली बार मैंने मनीष तिवारी का वह मदांध वक्तव्य सुना जिसमें कुछ दिनों पहले उसने अण्णा पर कीचड उछालते हुए सवाल पूछा था कि "अरे, तुम किस मुँहसे भ्रष्टाचार मिटानेकी बात करते हो, तुम तो खुद सरसे पाँव तक भ्रष्टाचारमें डूबे हो ।" एक तरफ यह अविवेकी वक्तव्य है। दूसरी तरफ मुझे दिखता है उस हार्डण्ड क्रिमिनल और मर्डरर का पुलिसमें दिया गया बयान जिसमें उसने कबूला कि उसने मंत्रीवर पदमसिंह पाटीलसे सुपारी लेकर एक आदमीका खून किया था, पर दूसरी सुपारी लेनेसे इसलिये इनकार किया कि वह सुपारी अण्णा हजारे के लिये थी और इस मर्डररकी आत्मा ने कहा – नही, ऐसे संत मनुष्यकी सुपारी मैं नही ले सकता।
तो तौलिये उस मर्डरर का विवेक और सांसद होनेके मदमें चूर मनीष तिवारी का अविवेक। और देखिये क्या हालत हुई उनकी जिन्होंने उसी वक्त ऐसे सांसदको नही लताडा – जिस मूर्खतासे उसने अण्णा पर कीचड उछाला वही कीचड आज उछलकर प्रधानमंत्री पर आ गिरा। और जब प्रधानमंत्री को भरी पार्लियामेंटमें अपने स्वच्छ चरित्रकी दुहाई देनी पडी तब किसीको होश आया कि अरे मनीषसे अफसोस तो जतवाओ। क्या वह दुखद सीन था जब मनीष की मदांधता की सजा खुद प्रधानमंत्री को भुगतनी पड रही थी, और सारा देश दुखी और अवाक् उनका बयान सुन रहा था।